||श्री सत्यनारायण व्रत कथा || - Rkalert.in

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мथम अφाय स΄नारायण Ңत कथा का पूरा सϰभा यह है कक पुराकािम शौनकाकिऋकि नैकमिार اәत महकिा सूत के आҪम पर पहंचे רऋकिगण महकिा सूत से мҨ करते ह क िौकक कҷमुकि, सांसाररक सुि समृकή एवं पारिौककक ि की धसकή के धिए सरि उपाय का है ? महकिा सूत शौनकाकिऋकियों को बताते ह क ऐसा ही мҨ नारि जी ने भगवान कवӀु से कया था רभगवान कवӀु ने नारि जी को बताया क िौकक ेशमुकि, सांसाररक सुिसमृकή एवं पारिौककक ि धसकή के धिए एक ही राजमागा है , वह है स΄नारायण Ңत רस΄नारायण का अथा है स΄ाचरण, स΄ाह, स΄कनҽा רसंसार म सुिसमृकή की мाकа स΄ाचरणπारा ही संभव है רस΄ ही ईҮर है רस΄ाचरण का अथा है ईҮरारािन, भगवूजा רकथा का мारंभ सूत जी πारा कथा सुनाने से होता है רनारि जी भगवान ҪीकवӀु के पास जाकर उनकी Ӓुकत करते ह רӒुकत सुनने के अनϜर भगवान ҪीकवӀु जी ने नारि जी से कहा- महाभाग! आप ककस мयोजन से यहां आये ह , आपके मन म का है ? कहये , वह सब कुछ म आपको बताउंगा רनारि जी बोिे - भगवन! मृ΄ुिोक म अपने पापकम के πारा कवधभϿ योकनयों म उϿ सभी िोग बहत мकार के ेशों से िु िी हो रहे ह רहे नाथ! कस िघु उपाय से उनके कҷों का कनवारण हो सके गा, यकि आपकी मेरे ऊपर कृपा हो तो वह सब म सुनना चाहता हं רउसे बताय ר||ी सनारायण त कथा || जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा जय ली रमणा INSTAPDF.IN

Transcript of ||श्री सत्यनारायण व्रत कथा || - Rkalert.in

प्रथम अध्याय

सत्यनारायण व्रत कथा का पूरा सन्दभा यह है कक पुराकािमें शौनकाकिऋकि नैकमिारण्य स्तस्थत महकिा सूत के आश्रम पर पहंचे। ऋकिगण महकिा सूत से प्रश्न करते हैं कक िौककक

कष्टमुकि, सांसाररक सिु समृकि एवं पारिौककक िक्ष्य की धसकि के धिए सरि उपाय क्या है? महकिा सूत शौनकाकिऋकियों को बताते हैं कक ऐसा ही प्रश्न नारि जी ने भगवान कवष्णु से

ककया था। भगवान कवष्णु ने नारि जी को बताया कक िौककक क्लेशमुकि, सांसाररक सिुसमृकि एवं पारिौककक िक्ष्य धसकि के धिए एक ही राजमागा है, वह है सत्यनारायण व्रत।

सत्यनारायण का अथा है सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यकनष्ठा। संसार में सुिसमृकि की प्राकि सत्याचरणद्वारा ही संभव है। सत्य ही ईश्वर है। सत्याचरण का अथा है ईश्वरारािन, भगवत्पूजा।

कथा का प्रारंभ सूत जी द्वारा कथा सुनाने से होता है। नारि जी भगवान श्रीकवष्णु के पास जाकर उनकी िुकत करते हैं। िुकत सुनने के अनन्तर भगवान श्रीकवष्णु जी ने नारि जी से

कहा- महाभाग! आप ककस प्रयोजन से यहां आये हैं, आपके मन में क्या है? ककहय,े वह सब कुछ मैं आपको बताउंगा।

नारि जी बोिे - भगवन! मृत्युिोक में अपने पापकमों के द्वारा कवधभन्न योकनयों में उत्पन्न सभी िोग बहत प्रकार के क्लशेों से ििुी हो रहे हैं। हे नाथ! ककस िघु उपाय से उनके कष्टों

का कनवारण हो सकेगा, यकि आपकी मेरे ऊपर कृपा हो तो वह सब मैं सुनना चाहता हं। उसे बतायें।

||श्री सत्यनारायण व्रत कथा ||

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

क्ष्मी र

मणा

जय ल

क्ष्मी र

मणा

जय ल

क्ष्मी र

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क्ष्मी र

मणा जय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणा

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श्री भगवान ने कहा - हे वत्स! संसार के ऊपर अनुग्रह करने की इच्छा से आपने बहत अच्छी बात पूछी है। धजस व्रत के करने से प्राणी मोह से मिु हो जाता है, उसे आपको बताता

हं, सुनें। हे वत्स! स्वगा और मतृ्युिोक में ििुाभ भगवान सत्यनारायण का एक महान पुण्यप्रि व्रत है। आपके स्नेह के कारण इस समय मैं उसे कह रहा हं। अच्छी प्रकार कवधि-कविान

से भगवान सत्यनारायण व्रत करके मनुष्य शीघ्र ही सुि प्राि कर परिोक में मोक्ष प्राि कर सकता है।

भगवान की ऐसी वाणी सनुकर नारि मुकन ने कहा -प्रभो इस व्रत को करने का िि क्या है? इसका कविान क्या है? इस व्रत को ककसने ककया और इसे कब करना चाकहए? यह सब

कविारपूवाक बतिाइये।

श्री भगवान ने कहा - यह सत्यनारायण व्रत ििु-शोक आकि का शमन करने वािा, िन-िान्य की वृकि करने वािा, सौभाग्य और संतान िेने वािा तथा सवात्र कवजय प्रिान करने वािा

है। धजस-ककसी भी किन भकि और श्रिा से समधित होकर मनषु्य ब्राह्मणों और बन्धुबान्धवों के साथ िमा में तत्पर होकर सायंकाि भगवान सत्यनारायण की पूजा करे। नैवेद्य के रूप में

उत्तम कोकट के भोजनीय पिाथा को सवाया मात्रा में भकिपूवाक अकपात करना चाकहए। केिे के िि, घी, ििू, गेहं का चूणा अथवा गेहं के चूणा के अभाव में साठी चावि का चूणा,

शक्कर या गुड़ - यह सब भक्ष्य सामग्री सवाया मात्रा में एकत्र कर कनवेकित करनी चाकहए।

बन्धु-बान्धवों के साथ श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनकर ब्राह्मणों को िधक्षणा िेनी चाकहए। तिनन्तर बन्धु-बान्धवों के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाकहए। भकिपूवाक प्रसाि

ग्रहण करके नृत्य-गीत आकि का आयोजन करना चाकहए। तिनन्तर भगवान सत्यनारायण का स्मरण करते हए अपने घर जाना चाकहए। ऐसा करने से मनुष्यों की अधभिािा अवश्य पूणा

होती है। कवशेि रूप से कधियुग में, पृथ्वीिोक में यह सबसे छोटा सा उपाय है।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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क्ष्मी र

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ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणा

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िसूरा अध्याय

श्रीसूतजी बोिे - हे कद्वजो!ं अब मैं पुनः पूवाकाि में धजसने इस सत्यनारायण व्रत को ककया था, उसे भिीभांकत कविारपवूाक कहंगा। रमणीय काशी नामक नगर में कोई अत्यन्त कनिान

ब्राह्मण रहता था। भूि और प्यास से व्याकुि होकर वह प्रकतकिन पृथ्वी पर भटकता रहता था। ब्राह्मण कप्रय भगवान ने उस ििुी ब्राह्मण को िेिकर वृि ब्राह्मण का रूप िारण करके

उस कद्वज से आिरपूवाक पूछा - हे कवप्र! प्रकतकिन अत्यन्त ििुी होकर तुम ककसधिए पृथ्वीपर भ्रमण करते रहते हो। हे कद्वजशे्रष्ठ! यह सब बतिाओ, मैं सुनना चाहता हं।

ब्राह्मण बोिा - प्रभो! मैं अत्यन्त िररद्र ब्राह्मण हं और धभक्षा के धिए ही पृथ्वी पर घूमा करता हं। यकि मेरी इस िररद्रता को िरू करने का आप कोई उपाय जानते हों तो कृपापूवाक

बतिाइये। वृि ब्राह्मण बोिा - हे ब्राह्मणिेव! सत्यनारायण भगवान् कवष्णु अभीष्ट िि को िेने वािे हैं। हे कवप्र! तुम उनका उत्तम व्रत करो, धजसे करने से मनषु्य सभी ििुों से मिु हो

जाता है।

व्रत के कविान को भी ब्राह्मण से यत्नपूवाक कहकर वृि ब्राह्मणरूपिारी भगवान् कवष्णु वही ं पर अन्तिाान हो गये। ‘वृि ब्राह्मण ने जैसा कहा है, उस व्रत को अच्छी प्रकार से वैसे ही

करंूगा’ - यह सोचते हए उस ब्राह्मण को रात में नीिं नही ं आयी।

अगिे किन प्रातः काि उठकर ‘सत्यनारायण का व्रत करंूगा’ ऐसा संकल्प करके वह ब्राह्मण धभक्षा के धिए चि पड़ा। उस किन ब्राह्मण को धभक्षा में बहत सा िन प्राि हआ। उसी िन

से उसने बन्धु-बान्धवों के साथ भगवान सत्यनारायण का व्रत ककया। इस व्रत के प्रभाव से वह शे्रष्ठ ब्राह्मण सभी ििुों से मुि होकर समि सम्पकत्तयों से सम्पन्न हो गया।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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मणा जय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

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उस किन से िकेर प्रत्येक महीने उसने यह व्रत ककया। इस प्रकार भगवान् सत्यनारायण के इस व्रत को करके वह शे्रष्ठ ब्राह्मण सभी पापों से मुि हो गया और उसने ििुाभ मोक्षपि को

प्राि ककया। हे कवप्र! पृथ्वी पर जब भी कोई मनषु्य श्री सत्यनारायण का व्रत करेगा, उसी समय उसके समि ििु नष्ट हो जायेंगे। हे ब्राह्मणो!ं इस प्रकार भगवान नारायण ने महात्मा

नारिजी से जो कुछ कहा, मैंने वह सब आप िोगों से कह किया, आगे अब और क्या कहं? हे मुन!े इस पृथ्वी पर उस ब्राह्मण से सुने हए इस व्रत को ककसने ककया? हम वह सब सुनना

चाहते हैं, उस व्रत पर हमारी श्रिा हो रही है।

श्री सूत जी बोिे - मुकनयो!ं पृथ्वी पर धजसने यह व्रत ककया, उसे आप िोग सुनें। एक बार वह कद्वजश्रेष्ठ अपनी िन-सम्पकत्त के अनुसार बन्धु-बान्धवों तथा पररवारजनों के साथ व्रत करने

के धिए उद्यत हआ। इसी बीच एक िकड़हारा वहां आया और िकड़ी बाहर रिकर उस ब्राह्मण के घर गया। प्यास से व्याकुि वह उस ब्राह्मण को व्रत करता हआ िेि प्रणाम करके

उससे बोिा - प्रभो! आप यह क्या कर रहे हैं, इसके करने से ककस िि की प्राकि होती है, कविारपूवाक मुझसे ककहये।

कवप्र ने कहा - यह सत्यनारायण का व्रत है, जो सभी मनोरथों को प्रिान करने वािा है। उसी के प्रभाव से मुझे यह सब महान िन-िान्य आकि प्राि हआ है। जि पीकर तथा प्रसाि

ग्रहण करके वह नगर चिा गया। सत्यनारायण िेव के धिए मन से ऐसा सोचने िगा कक ‘आज िकड़ी बेचने से जो िन प्राि होगा, उसी िन से भगवान सत्यनारायण का शे्रष्ठ व्रत

करंूगा।’ इस प्रकार मन से धचन्तन करता हआ िकड़ी को मिक पर रि कर उस सुन्दर नगर में गया, जहां िन-सम्पन्न िोग रहते थे। उस किन उसने िकड़ी का िगुुना मूल्य प्राि

ककया।

इसके बाि प्रसन्न हृिय होकर वह पके हए केिे का िि, शका रा, घी, ििू और गेहं का चूणा सवाया मात्रा में िेकर अपने घर आया। तत्पश्चात उसने अपने बान्धवों को बुिाकर कवधि-

कविान से भगवान श्री सत्यनारायण का व्रत ककया। उस व्रत के प्रभाव से वह िन-पुत्र से सम्पन्न हो गया और इस िोक में अनेक सिुों का उपभोग कर अन्त में सत्यपुर अथाात्

बैकुण्ठिोक चिा गया।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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ी रमणाजय लक्ष्म

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तीसरा अध्याय

श्री सूतजी बोिे - शे्रष्ठ मुकनयो!ं अब मैं पुनः आगे की कथा कहंगा, आप िोग सुनें। प्राचीन काि में उल्कामुि नाम का एक राजा था। वह धजतेधन्द्रय, सत्यवािी तथा अत्यन्त बुकिमान

था। वह कवद्वान राजा प्रकतकिन िेवािय जाता और ब्राह्मणों को िन िेकर सन्तुष्ट करता था। कमि के समान मिु वािी उसकी िमापत्नी शीि, कवनय एवं सौन्दया आकि गुणों से सम्पन्न

तथा पकतपरायणा थी। राजा एक किन अपनी िमापत्नी के साथ भद्रशीिा निी के तट पर श्रीसत्यनारायण का व्रत कर रहा था। उसी समय व्यापार के धिए अनेक प्रकार की पुष्कि

िनराधश से सम्पन्न एक सािु नाम का बकनया वहां आया। भद्रशीिा निी के तट पर नाव को स्थाकपत कर वह राजा के समीप गया और राजा को उस व्रत में िीधक्षत िेिकर कवनयपूवाक

पूछने िगा।

सािु ने कहा - राजन्! आप भकियुि धचत्त से यह क्या कर रहे हैं? कृपया वह सब बताइय,े इस समय मैं सुनना चाहता हं। राजा बोिे - हे सािो! पतु्र आकि की प्राकि की कामना से

अपने बन्धु-बान्धवों के साथ मैं अतुि तेज सम्पन्न भगवान् कवष्णु का व्रत एवं पूजन कर रहा हं। राजा की बात सुनकर सािु ने आिरपूवाक कहा - राजन् ! इस कविय में आप मझुे सब

कुछ कविार से बतिाइय,े आपके कथनानुसार मैं व्रत एवं पूजन करंूगा। मुझे भी संतकत नही ं है। ‘इससे अवश्य ही संतकत प्राि होगी।’ ऐसा कवचार कर वह व्यापार से कनवृत्त हो

आनन्दपवूाक अपने घर आया। उसने अपनी भायाा से संतकत प्रिान करने वािे इस सत्यव्रत को कविार पूवाक बताया तथा - ‘जब मझुे संतकत प्राि होगी तब मैं इस व्रत को करंूगा’ -

इस प्रकार उस सािु ने अपनी भायाा िीिावती से कहा।

एक किन उसकी िीिावती नाम की सती-साध्वी भायाा पकत के साथ आनन्द धचत्त से ऋतुकािीन िमााचरण में प्रवृत्त हई और भगवान् श्रीसत्यनारायण की कृपा से उसकी वह भायाा

गधभाणी हई। िसवें महीने में उससे कन्यारत्न की उत्पकत्त हई और वह शुक्लपक्ष के चन्द्रम की भांकत किन-प्रकतकिन बढ़ने िगी।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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उस कन्या का ‘किावती’ यह नाम रिा गया। इसके बाि एक किन िीिावती ने अपने स्वामी से मिुर वाणी में कहा - आप पूवा में संकस्तल्पत श्री सत्यनारायण के व्रत को क्यों नही ं कर

रहे हैं? सािु बोिा - ‘कप्रये! इसके कववाह के समय व्रत करंूगा।’ इस प्रकार अपनी पत्नी को भिी-भांकत आश्वि कर वह व्यापार करने के धिए नगर की ओर चिा गया। इिर कन्या

किावती कपता के घर में बढ़ने िगी। तिनन्तर िमाज्ञ सािु ने नगर में सधियों के साथ क्रीड़ा करती हई अपनी कन्या को कववाह योग्य िेिकर आपस में मन्त्रणा करके ‘कन्या कववाह के

धिए शे्रष्ठ वर का अिेिण करो’ - ऐसा ितू से कहकर शीघ्र ही उसे भेज किया। उसकी आज्ञा प्राि करके ितू कांचन नामक नगर में गया और वहां से एक वधणक का पुत्र िकेर आया।

उस सािु ने उस वधणक के पुत्र को सनु्दर और गुणों से सम्पन्न िेिकर अपनी जाकत के िोगों तथा बन्धु-बान्धवों के साथ संतुष्टधचत्त हो कवधि-कविान से वधणकपुत्र के हाथ में कन्या का

िान कर किया।

उस समय वह सािु बकनया िभुााग्यवश भगवान् का वह उत्तम व्रत भूि गया। पूवा संकल्प के अनुसार कववाह के समय में व्रत न करने के कारण भगवान उस पर रुष्ट हो गये। कुछ

समय के पश्चात अपने व्यापारकमा में कुशि वह सािु बकनया काि की प्रेरणा से अपने िामाि के साथ व्यापार करने के धिए समुद्र के समीप स्तस्थत रत्नसारपुर नामक सनु्दर नगर में गया

और पअने श्रीसम्पन्न िामाि के साथ वहां व्यापार करने िगा। उसके बाि वे िोों राजा चन्द्रकेतु के रमणीय उस नगर में गये। उसी समय भगवान् श्रीसत्यनारायण ने उसे भ्रष्टप्रकतज्ञ

िेिकर ‘इसे िारुण, ककठन और महान् ििु प्राि होगा’ - यह शाप िे किया।

एक किन एक चोर राजा चन्द्रकेतु के िन को चुराकर वही ं आया, जहां िोनों वधणक स्तस्थत थे। वह अपने पीछे िौड़ते हए ितूों को िेिकर भयभीतधचत्त से िन वही ं छोड़कर शीघ्र ही

धछप गया। इसके बाि राजा के ितू वहां आ गये जहां वह सािु वधणक था। वहां राजा के िन को िेिकर वे ितू उन िोनों वधणकपुत्रों को बांिकर िे आये और हिापूवाक िौड़ते हए

राजा से बोिे - ‘प्रभो! हम िो चोर पकड़ िाए हैं, इन्हें िेिकर आप आज्ञा िें’। राजा की आज्ञा से िोनों शीघ्र ही दृढ़तापवूाक बांिकर कबना कवचार ककये महान कारागार में डाि किये

गये। भगवान् सत्यिेव की माया से ककसी ने उन िोनों की बात नही ं सुनी और राजा चन्द्रकेतु ने उन िोनों का िन भी िे धिया।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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ी रमणाजय लक्ष्म

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भगवान के शाप से वधणक के घर में उसकी भायाा भी अत्यन्त िधुित हो गयी और उनके घर में सारा-का-सारा जो िन था, वह चोर ने चुरा धिया। िीिावती शारीररक तथा मानधसक

पीड़ाओं से युि, भूि और प्यास से ििुी हो अन्न की धचन्ता से िर-िर भटकने िगी। किावती कन्या भी भोजन के धिए इिर-उिर प्रकतकिन घूमने िगी। एक किन भूि से पीक डत

किावती एक ब्राह्मण के घर गयी। वहां जाकर उसने श्रीसत्यनारायण के व्रत-पूजन को िेिा। वहां बैठकर उसने कथा सुनी और वरिान मांगा। उसके बाि प्रसाि ग्रहण करके वह कुछ

रात होने पर घर गयी। माता ने किावती कन्या से प्रेमपूवाक पूछा - पुत्री ! रात में तू कहां रुक गयी थी? तमु्हारे मन में क्या है? किावती कन्या ने तरुन्त माता से कहा - मा!ं मैंने एक

ब्राह्मण के घर में मनोरथ प्रिान करने वािा व्रत िेिा है। कन्या की उस बात को सुनकर वह वधणक की भायाा व्रत करने को उद्यत हई और प्रसन्न मन से उस साध्वी ने बन्धु-बान्धवों के

साथ भगवान् श्रीसत्यनारायण का व्रत ककया तथा इस प्रकार प्राथाना की - ‘भगवन! आप हमारे पकत एवं जामाता के अपराि को क्षमा करें। वे िोनों अपने घर शीघ्र आ जायं।’ इस व्रत

से भगवान सत्यनारायण पुनः संतुष्ट हो गये तथा उन्होनंे नृपशे्रष्ठ चन्द्रकेतु को स्वप्न कििाया और स्वप्न में कहा - ‘नपृशे्रष्ठ! प्रातः काि िोनों वधणकों को छोड़ िो और वह सारा िन भी िे

िो, जो तुमने उनसे इस समय िे धिया है, अन्यथा राज्य, िन एवं पुत्रसकहत तुम्हारा सवानाश कर िूंगा।’

राजा से स्वप्न में ऐसा कहकर भगवान सत्यनारायण अन्तिाान हो गये। इसके बाि प्रातः काि राजा ने अपने सभासिों के साथ सभा में बैठकर अपना स्वप्न िोगों को बताया और कहा -

‘िोनों बंिी वधणकपुत्रों को शीघ्र ही मुि कर िो।’ राजा की ऐसी बात सुनकर वे राजपुरुि िोनों महाजनों को बन्धनमिु करके राजा के सामने िाकर कवनयपूवाक बोिे - ‘महाराज! बेड़ी-

बन्धन से मुि करके िोनों वधणक पुत्र िाये गये हैं। इसके बाि िोनों महाजन नृपश्रेष्ठ चन्द्रकेतु को प्रणाम करके अपने पवूा-वृतान्त का स्मरण करते हए भयकवह्वन हो गये और कुछ बोि

न सके। राजा ने वधणक पुत्रों को िेिकर आिरपवूाक कहा -‘आप िोगों को प्रारब्धवश यह महान ििु प्राि हआ है, इस समय अब कोई भय नही ं है।’, ऐसा कहकर उनकी बडे़ी

िुिवाकर क्षौरकमा आकि कराया। राजा ने वस्त्र, अिंकार िेकर उन िोनों वधणकपुत्रों को संतुष्ट ककया तथा सामने बुिाकर वाणी द्वारा अत्यधिक आनधन्दत ककया। पहिे जो िन धिया

था, उसे िनूा करके किया, उसके बाि राजा ने पुनः उनसे कहा - ‘सािो! अब आप अपने घर को जायं।’ राजा को प्रणाम करके ‘आप की कृपा से हम जा रहे हैं।’ - ऐसा कहकर उन

िोनों महावैश्यों ने अपने घर की ओर प्रस्थान ककया।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

क्ष्मी र

मणा

जय ल

क्ष्मी र

मणा

जय ल

क्ष्मी र

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क्ष्मी र

मणा जय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणा

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चौथा अध्याय

श्रीसूत जी बोिे - सािु बकनया मंगिाचरण कर और ब्राह्मणों को िन िेकर अपने नगर के धिए चि पड़ा। सािु के कुछ िरू जाने पर भगवान सत्यनारायण की उसकी सत्यता की परीक्षा

के कविय में धजज्ञासा हई - ‘सािो! तुम्हारी नाव में क्या भरा है?’ तब िन के मि में चूर िोनों महाजनों ने अवहेिनापूवाक हंसते हए कहा - ‘िस्तिन! क्यों पूछ रहे हो? क्या कुछ द्रव्य

िेने की इच्छा है? हमारी नाव में तो िता और पत्ते आकि भरे हैं।’ ऐसी कनषु्ठर वाणी सनुकर - ‘तुम्हारी बात सच हो जाय’ - ऐसा कहकर ििी संन्यासी को रूप िारण ककये हए भगवान

कुछ िरू जाकर समुद्र के समीप बैठ गये।

ििी के चिे जाने पर कनत्यकक्रया करने के पश्चात उतराई हई अथाात जि में उपर की ओर उठी हई नौका को िेिकर सािु अत्यन्त आश्चया में पड़ गया और नाव में िता और पते्त आकि

िेिकर मुधछात हो पृथ्वी पर कगर पड़ा। सचेत होने पर वधणकपुत्र धचस्तन्तत हो गया। तब उसके िामाि ने इस प्रकार कहा - ‘आप शोक क्यों करते हैं? ििी ने शाप िे किया है, इस

स्तस्थकत में वे ही चाहें तो सब कुछ कर सकते हैं, इसमें संशय नही।ं अतः उन्ही ं की शरण में हम चिें, वही ं मन की इच्छा पूणा होगी।’ िामाि की बात सुनकर वह सािु बकनया उनके

पास गया और वहां ििी को िेिकर उसने भकिपूवाक उन्हें प्रणाम ककया तथा आिरपूवाक कहने िगा - आपके सम्मुि मैंने जो कुछ कहा है, असत्यभािण रूप अपराि ककया है, आप

मेरे उस अपराि को क्षमा करें - ऐसा कहकर बारम्बार प्रणाम करके वह महान शोक से आकुि हो गया।

ििी ने उसे रोता हआ िेिकर कहा - ‘हे मूिा! रोओ मत, मरेी बात सुनो। मरेी पूजा से उिासीन होने के कारण तथा मरेी आज्ञा से ही तुमने बारम्बार ििु प्राि ककया है।’ भगवान की

ऐसी वाणी सुनकर वह उनकी िुकत करने िगा। सािु ने कहा - ‘हे प्रभो! यह आश्चया की बात है कक आपकी माया से मोकहत होने के कारण ब्रह्मा आकि िेवता भी आपके गुणों और

रूपों को यथावत रूप से नही ं जान पाते, किर मैं मूिा आपकी माया से मोकहत होने के कारण कैसे जान सकता हं! आप प्रसन्न हो।ं मैं अपनी िन-सम्पकत्त के अनुसार आपकी पूजा

करंूगा। मैं आपकी शरण में आया हं। मेरा जो नौका में स्तस्थत पुराा िन था, उसकी तथा मेरी रक्षा करें।’ उस बकनया की भकियुि वाणी सुनकर भगवान जनािान संतुष्ट हो गये।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

क्ष्मी र

मणा

जय ल

क्ष्मी र

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जय ल

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मणा जय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

ी रमणाजय लक्ष्म

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ी रमणा

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भगवान हरर उसे अभीष्ट वर प्रिान करके वही ं अन्तिाान हो गये। उसके बाि वह सािु अपनी नौका में चढ़ा और उसे िन-िान्य से पररपूणा िेिकर ‘भगवान सत्यिेव की कृपा से हमारा

मनोरथ सिि हो गया’ - ऐसा कहकर स्वजनों के साथ उसने भगवान की कवधिवत पूजा की। भगवान श्री सत्यनारायण की कृपा से वह आनन्द से पररपणूा हो गया और नाव को

प्रयत्नपूवाक संभािकर उसने अपने िेश के धिए प्रस्थान ककया। सािु बकनया ने अपने िामाि से कहा - ‘वह िेिो मेरी रत्नपरुी नगरी कििायी िे रही है’। इसके बाि उसने अपने िन के

रक्षक ितू कोअपने आगमन का समाचार िेने के धिए अपनी नगरी में भेजा।

उसके बाि उस ितू ने नगर में जाकर सािु की भायाा को िेि हाथ जोड़कर प्रणाम ककया तथा उसके धिए अभीष्ट बात कही -‘सेठ जी अपने िामाि तथा बन्धुवगों के साथ बहत सारे

िन-िान्य से सम्पन्न होकर नगर के कनकट पिार गये हैं।’ ितू के मुि से यह बात सुनकर वह महान आनन्द से कवह्वि हो गयी और उस साध्वी ने श्री सत्यनारायण की पूजा करके

अपनी पुत्री से कहा -‘मैं सािु के िशान के धिए जा रही हं, तुम शीघ्र आओ।’ माता का ऐसा वचन सुनकर व्रत को समाि करके प्रसाि का पररत्याग कर वह किावती भी अपने पकत

का िशान करने के धिए चि पड़ी। इससे भगवान सत्यनारायण रुष्ट हो गये और उन्होनंे उसके पकत को तथा नौका को िन के साथ हरण करके जि में डुबो किया।

इसके बाि किावती कन्या अपने पकत को न िेि महान शोक से रुिन करती हई पृथ्वी पर कगर पड़ी। नाव का अिशान तथा कन्या को अत्यन्त ििुी िेि भयभीत मन से सािु बकनया से

सोचा - यह क्या आश्चया हो गया? नाव का संचािन करने वािे भी सभी धचस्तन्तत हो गये। तिनन्तर वह िीिावती भी कन्या को िेिकर कवह्वि हो गयी और अत्यन्त ििु से कविाप

करती हई अपने पकत से इस प्रकार बोिी -‘ अभी-अभी नौका के साथ वह कैसे अिधक्षत हो गया, न जाने ककस िेवता की उपके्षा से वह नौका हरण कर िी गयी अथवा

श्रीसत्यनारायण का माहात्म्य कौन जान सकता है!’ ऐसा कहकर वह स्वजनों के साथ कविाप करने िगी और किावती कन्या को गोि में िेकर रोने िगी।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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ी रमणाजय लक्ष्म

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किावती कन्या भी अपने पकत के नष्ट हो जाने पर ििुी हो गयी और पकत की पािकुा िेकर उनका अनुगमन करने के धिए उसने मन में कनश्चय ककया। कन्या के इस प्रकार के आचरण

को िेि भायाासकहत वह िमाज्ञ सािु बकनया अत्यन्त शोक-संति हो गया और सोचने िगा - या तो भगवान सत्यनारायण ने यह अपहरण ककया है अथवा हम सभी भगवान सत्यिेव की

माया से मोकहत हो गये हैं। अपनी िन शकि के अनुसार मैं भगवान श्री सत्यनारायण की पूजा करंूगा। सभी को बिुाकर इस प्रकार कहकर उसने अपने मन की इच्छा प्रकट की और

बारम्बार भगवान सत्यिेव को ििवत प्रणाम ककया। इससे िीनों के पररपािक भगवान सत्यिेव प्रसन्न हो गये। भिवत्सि भगवान ने कृपापूवाक कहा - ‘तुम्हारी कन्या प्रसाि छोड़कर

अपने पकत को िेिने चिी आयी है, कनश्चय ही इसी कारण उसका पकत अदृश्य हो गया है। यकि घर जाकर प्रसाि ग्रहण करके वह पुनः आये तो हे सािु बकनया तुम्हारी पुत्री पकत को

प्राि करेगी, इसमें संशय नही।ं

कन्या किावती भी आकाशमिि से ऐसी वाणी सुनकर शीघ्र ही घर गयी और उसने प्रसाि ग्रहण ककया। पुनः आकर स्वजनों तथा अपने पकत को िेिा। तब किावती कन्या ने अपने

कपता से कहा - ‘अब तो घर चिें, कविम्ब क्यों कर रहे हैं?’ कन्या की वह बात सुनकर वधणकपुत्र संतुष्ट हो गया और कवधि-कविान से भगवान सत्यनारायण का पूजन करके िन तथा

बन्ध-ुबान्धवों के साथ अपने घर गया। तिनन्तर पूधणामा तथा संक्रास्तन्त पवों पर भगवान सत्यनारायण का पूजन करते हए इस िोक में सिु भोगकर अन्त में वह सत्यपरु बैकुण्ठिोक में

चिा गया।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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पाचंवा अध्याय

श्रीसूत जी बोिे - शे्रष्ठ मुकनयो!ं अब इसके बाि मैं िसूरी कथा कहंगा, आप िोग सुनें। अपनी प्रजा का पािन करने में तत्पर तुं गध्वज नामक एक राजा था। उसने सत्यिेव के प्रसाि का

पररत्याग करके ििु प्राि ककया। एक बाि वह वन में जाकर और वहां बहत से पशुओं को मारकर वटवृक्ष के नीचे आया। वहां उसने िेिा कक गोपगण बन्धु-बान्धवों के साथ संतुष्ट

होकर भकिपूवाक भगवान सत्यिेव की पूजा कर रहे हैं। राजा यह िेिकर भी अहंकारवश न तो वहां गया और न उसे भगवान सत्यनारायण को प्रणाम ही ककया। पूजन के बाि सभी

गोपगण भगवान का प्रसाि राजा के समीप रिकर वहां से िौट आये और इच्छानुसार उन सभी ने भगवान का प्रसाि ग्रहण ककया। इिर राजा को प्रसाि का पररत्याग करने से बहत

ििु हआ।

उसका सम्पूणा िन-िान्य एवं सभी सौ पुत्र नष्ट हो गये। राजा ने मन में यह कनश्चय ककया कक अवश्य ही भगवान सत्यनारायण ने हमारा नाश कर किया है। इसधिए मुझे वहां जाना

चाकहए जहां श्री सत्यनारायण का पूजन हो रहा था। ऐसा मन में कनश्चय करके वह राजा गोपगणों के समीप गया और उसने गोपगणों के साथ भकि-श्रिा से युि होकर कवधिपूवाक

भगवान सत्यिेव की पूजा की। भगवान सत्यिेव की कृपा से वह पुनः िन और पुत्रों से सम्पन्न हो गया तथा इस िोक में सभी सिुों का उपभोग कर अन्त में सत्यपुर वैकुण्ठिोक को

प्राि हआ।

श्रीसूत जी कहते हैं - जो व्यकि इस परम ििुाभ श्री सत्यनारायण के व्रत को करता है और पुण्यमयी तथा ििप्रिाकयनी भगवान की कथा को भकियुि होकर सुनता है, उसे भगवान

सत्यनारायण की कृपा से िन-िान्य आकि की प्राकि होती है। िररद्र िनवान हो जाता है, बन्धन में पड़ा हआ बन्धन से मिु हो जाता है, डरा हआ व्यकि भय मुि हो जाता है - यह

सत्य बात है, इसमें संशय नही।ं इस िोक में वह सभी ईस्तित ििों का भोग प्राि करके अन्त में सत्यपुर वैकुण्ठिोक को जाता है। हे ब्राह्मणो!ं इस प्रकार मैंने आप िोगों से भगवान

सत्यनारायण के व्रत को कहा, धजसे करके मनुष्य सभी ििुों से मुि हो जाता है।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

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कधियुग में तो भगवान सत्यिेव की पूजा कवशेि िि प्रिान करने वािी है। भगवान कवष्णु को ही कुछ िोग काि, कुछ िोग सत्य, कोई ईश और कोई सत्यिेव तथा िसूरे िोग

सत्यनारायण नाम से कहेंगे। अनेक रूप िारण करके भगवान सत्यनारायण सभी का मनोरथ धसि करते हैं। कधियुग में सनातन भगवान कवषु्ण ही सत्यव्रत रूप िारण करके सभी का

मनोरथ पूणा करने वािे होगंे। हे शे्रष्ठ मुकनयो!ं जो व्यकि कनत्य भगवान सत्यनारायण की इस व्रत-कथा को पढ़ता है, सुनता है, भगवान सत्यारायण की कृपा से उसके सभी पाप नष्ट हो

जाते हैं। हे मुनीश्वरो!ं पूवाकाि में धजन िोगों ने भगवान सत्यनारायण का व्रत ककया था, उसके अगिे जन्म का वृतान्त कहता हं, आप िोग सुनें।

महान प्रज्ञासम्पन्न शतानन्द नाम के ब्राह्मण सत्यनारायण व्रत करने के प्रभाव से िसेू जन्म में सुिामा नामक ब्राह्मण हए और उस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करके उन्होनंे मोक्ष

प्राि ककया। िकड़हारा धभल्ल गुहों का राजा हआ और अगिे जन्म में उसने भगवान श्रीराम की सेवा करके मोक्ष प्राि ककया। महाराज उल्कामिु िसूरे जन्म में राजा िशरथ हए,

धजन्होनंे श्रीरंगनाथजी की पूजा करके अन्त में वैकुण्ठ प्राि ककया। इसी प्रकार िाकमाक और सत्यव्रती सािु कपछिे जन्म के सत्यव्रत के प्रभाव से िसूरे जन्म में मोरध्वज नामक राजा

हआ। उसने आरे सेचीरकर अपने पुत्र की आिी िेह भगवान कवष्णु को अकपात कर मोक्ष प्राि ककया। महाराजा तुं गध्वज जन्मान्तर में स्वायम्भुव मनु हए और भगवत्सम्बन्धी सम्पूणा कायों

का अनषु्ठान करके वैकुण्ठिोक को प्राि हए। जो गोपगण थे, वे सब जन्मान्तर में व्रजमिि में कनवास करने वािे गोप हए और सभी राक्षसों का संहार करके उन्होनंे भी भगवान का

शाश्वत िाम गोिोक प्राि ककया।

इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अन्तगात रेवािि में श्रीसत्यनारायणव्रत कथा का यह पांचवां अध्याय पूणा हआ।

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय लक्ष्मी रमणाजय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा जय लक्ष्मी रमणा

जय ल

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